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डॉसन पायने और लॉकेट प्रूफ़िंग मशीन (लंदन) 1931 में स्थापित की गई
परंपरागत अक्षर मुद्रण एक रिलीफ़ मुद्रण की तकनीक है। इस प्रक्रिया में मुद्रण प्रेस के प्रयोग द्वारा शीटों अथवा कागजों के रोल पर उभरी हुई सतह युक्त स्याही का बारम्बार सीधा मुद्रण किया जाता है। कार्मिक चालित टंकक मशीन में सामग्री तैयार करता है और छपाई की सतह पर अथवा मुद्रण मशीन की चैस पर लॉक कर, स्याही लगा कर तैयार करता है जो पृष्ठ पर छापते समय स्याही को टंकक मशीन (टाइप) से पृष्ठ पर छाप देता है।
कुछ एक अक्षर मुद्रण की इकाइयों में यह भी संभव है कि चालित टंकक पुर्जे में गरम धातु टाइपसेट के प्रयोग द्वारा स्लग कास्ट का उपयोग किया जाता है। सैद्धांतिक रूप से जो भी “टाइप हाई” है उस से बेड और पृष्ठ के बीच 0.918 इंच की मोटी परत बन जाती है।
जोहनेस गुटेनबर्ग के आविष्कार के बाद से ही 15वीं शताब्दी के मध्य से 19वीं शताब्दी तक मुद्रण कार्य के लिए अक्षर मुद्रण एक सामान्य प्रचलित पद्धति थी और 20 वीं शताब्दी के उत्तररार्थ तक पुस्तकों एवं अन्य कार्यों के मुद्रण के लिए चलन में रही। अक्षर मुद्रण मुद्रण एवं सूचना प्रसारण के कार्य में प्रमुख माध्यम रही जब तक कि ऑफसेट मुद्रण को विकसित नहीं किया गया था जो बाद में पुस्तकों एवं समाचारपत्रों के मुद्रण का प्रमुख माध्यम बन गई।